कल्ला जी का जन्म विक्रमी संवत १६०१ को दुर्गाष्टमी को मेडता में हुआ . मेडता रियासत के राव जयमल के छोटे भाई आस सिंह के पुत्र थे | बचपन मेडता में& ही बीता | कल्ला जी अपनी कुल देवी नागणेचीजी के बड़े भक्त थे| उनकी आराधना करते हुए योगाभ्यास भी किया | इसी के साथ ओषधि विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर वे कुशल चिकित्सक भी हो गए थे | उनके गुरू प्रसिद्ध योगी भैरव नाथ थे |
उनकी मूर्ति के चार हाथ होते है | इसके बारे में कहा जाता है कि सन १५६८ में अकबर की सेना ने चितौड़ पर आक्रमण कर दिया था | किले की रसद ख़त्म हो गयी थी | सेनापति जयमल राठौड़ने केसरिया बाना पहन कर शाकेका व क्षत्राणियों ने जौहरका फैसला किया किले का दरवाजा खोल कर चितौड़ी सेना मुगलों पर टूट पडी |
सेनापति जयमल राठौड़ के पैरो में गोली लगने से वे घायल हो गए थे | उनकी युध्द करने की बड़ी तीव्र इच्छा थी | किन्तु उठा नहीं जा रहा था | कल्ला जी राठौड़ से उनकी ये हालत देखी नहीं गयी | उन्होंने जयमल को अपने कंधो पर बैठा लिया व उनके दोनों हाथों में तलवार दे दी और स्वयं भी दोनों हाथों में तलवार ले ली | और दुशमनो पर टूट पड़े | जिधर से भे वे गुजरते दुश्मनों की लाशो का ढेर लग जाता | हाथी पर चढ़े हुए अकबर ने यह नजारा देख तो चकरा गया | उसने भारत के देवी दवताओ के चमत्कारों के बारे में सुन रखा था या खुदा ये भी दो सिर और चार हाथो वाला कोइ देव है क्या उसने मन में सोचा |
काफी देर वीरता पूर्वक युध करने पर कल्लाजी व जयमल जी काफी थक गए मौक़ा देख कर कल्ला जी ने चाचाजी को नीचे जमीन पर उतारा और दवा दारू करने लग गए | तभी एक सैनिक ने पीछे से वार कर उनका मस्तक काट दिया | फिर भी बहुत देर तक मस्तक विहीन धड मुगलों से लड़ता रहा |
उनके इस पराक्रम के कारण वे राजस्थान के लोक जन में चार हाथ वाले देवता के रूप में प्रसिद्घ हो गए | आज पूरे मेवाड़ ,पश्चिमी मध्य प्रदेश तथा उत्तरी गुजरात के गांवों में उनके मंदिर बने हुए है और मान्यता है | चितौड़ में जिस स्थान पर उनका बलिदान हुआ वंहा भैरो पोल पर एक छतरी बनी हुयी है | वहां हर साल आश्विन शुक्ला नवमी को एक विशाल मेले का आयोजन होता है |
कल्ला जी को शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा जाता है |
![]() |
कल्ला जी राठौड़ |
उनकी मूर्ति के चार हाथ होते है | इसके बारे में कहा जाता है कि सन १५६८ में अकबर की सेना ने चितौड़ पर आक्रमण कर दिया था | किले की रसद ख़त्म हो गयी थी | सेनापति जयमल राठौड़ने केसरिया बाना पहन कर शाकेका व क्षत्राणियों ने जौहरका फैसला किया किले का दरवाजा खोल कर चितौड़ी सेना मुगलों पर टूट पडी |
सेनापति जयमल राठौड़ के पैरो में गोली लगने से वे घायल हो गए थे | उनकी युध्द करने की बड़ी तीव्र इच्छा थी | किन्तु उठा नहीं जा रहा था | कल्ला जी राठौड़ से उनकी ये हालत देखी नहीं गयी | उन्होंने जयमल को अपने कंधो पर बैठा लिया व उनके दोनों हाथों में तलवार दे दी और स्वयं भी दोनों हाथों में तलवार ले ली | और दुशमनो पर टूट पड़े | जिधर से भे वे गुजरते दुश्मनों की लाशो का ढेर लग जाता | हाथी पर चढ़े हुए अकबर ने यह नजारा देख तो चकरा गया | उसने भारत के देवी दवताओ के चमत्कारों के बारे में सुन रखा था या खुदा ये भी दो सिर और चार हाथो वाला कोइ देव है क्या उसने मन में सोचा |
काफी देर वीरता पूर्वक युध करने पर कल्लाजी व जयमल जी काफी थक गए मौक़ा देख कर कल्ला जी ने चाचाजी को नीचे जमीन पर उतारा और दवा दारू करने लग गए | तभी एक सैनिक ने पीछे से वार कर उनका मस्तक काट दिया | फिर भी बहुत देर तक मस्तक विहीन धड मुगलों से लड़ता रहा |
उनके इस पराक्रम के कारण वे राजस्थान के लोक जन में चार हाथ वाले देवता के रूप में प्रसिद्घ हो गए | आज पूरे मेवाड़ ,पश्चिमी मध्य प्रदेश तथा उत्तरी गुजरात के गांवों में उनके मंदिर बने हुए है और मान्यता है | चितौड़ में जिस स्थान पर उनका बलिदान हुआ वंहा भैरो पोल पर एक छतरी बनी हुयी है | वहां हर साल आश्विन शुक्ला नवमी को एक विशाल मेले का आयोजन होता है |
कल्ला जी को शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा जाता है |